कांटों से भरी शाख पर खिलते गुलाब को.
हमने क़ुबूल कर लिया कैसे अज़ाब को.
दिल की नदी में टूटते बनते हुबाब को.
देखा नहीं किसी ने मेरे इज़्तराब को.
चेहरों से झांकते नहीं जज़्बात आजकल
रखते हैं लोग जिल्द में दिल की किताब को.
हमने क़ुबूल कर लिया कैसे अज़ाब को.
दिल की नदी में टूटते बनते हुबाब को.
देखा नहीं किसी ने मेरे इज़्तराब को.
चेहरों से झांकते नहीं जज़्बात आजकल
रखते हैं लोग जिल्द में दिल की किताब को.