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शनिवार, 11 मई 2013

किसी खुदा का हमें कोई डर नहीं होता

उसे कहीं भी भटकने का डर नहीं होता.
वो जिसके साथ कोई राहबर नहीं होता.

हम इस जहां में फकत आदमी से डरते हैं
किसी खुदा का हमें कोई डर नहीं होता.

न जाने कौन सी मिट्टी के बने होते हैं
किसी की बात का जिनपे असर नहीं होता

हरेक शख्स में इंसानियत नहीं होती
हरेक शख्स मगर जानवर नहीं होता.

वहां किसी पे भरोसा भी हो तो कैसे हो
खुद अपना साया जहां मोतबर नहीं होता.

न जाने कैसे दुआयें कुबूल होती हैं
मेरी दुआ का जरा भी असर नहीं होता.

कहीं पे कुछ तो हुआ है जो ऐसा आलम है
इतना वीरान तो कोई नगर नहीं होता.

----देवेंद्र गौतम