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रविवार, 30 जनवरी 2022

मकीं को ढूंढते खाली मकान हैं साहब!

शिकारी जा चुके लेकिन मचान हैं साहब!

मकीं को ढूंढते खाली मकान हैं साहब!

 

वो जिनको तीर चलाने का फन नहीं आता

उन्हीं के हाथ में सारे कमान हैं साहब!

 

जो बोल सकते थे अपनी ज़ुबान बेच चुके

जो बेज़ुबान थे वो बेज़ुबान हैं साहब!

 

हमारी बात अदालत तलक नहीं पहुंची

जो दर्ज हो न सके वे बयान हैं साहब!

 

बस उनके खून-पसीने की कमाई दे दो

ज़मीं को सींचने वाले किसान हैं साहब!

 

जड़ों से उखड़ा हुआ पेड़ हूं मगर अबतक

मेरे वजूद के कुछ तो निशान हैं साहब!

-देवेंद्र गौतम