किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़.. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़.
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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011
कभी फलक, कभी उड़ते हुए.....
कभी फलक, कभी उड़ते हुए परिंदे सी.
ख़ुशी मिली है मुझे बारहा न मिलने सी.
शज़र का क्या है के पत्ते भी हिल नहीं पाए
हवा चली थी किसी परकटे परिंदे सी.
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