इक नयी पौध अब उगाये तो.
कोई बरगद की जड़ हिलाए तो.
अपना चेहरा जरा दिखाए तो.
भेड़िया फिर नगर में आये तो.
बादलों की तरह बरस पड़ना
आग घर में कोई लगाये तो.
लोग सड़कों पे निकल आयेंगे
एक आवाज़ वो लगाये तो.
उनके कानों पे जूं न रेंगा पर
मेरी बातों पे तिलमिलाए तो.
फिर खुदा भी बचा न पायेगा
पाओं इक बार लडखडाये तो.
कोई बरगद की जड़ हिलाए तो.
अपना चेहरा जरा दिखाए तो.
भेड़िया फिर नगर में आये तो.
बादलों की तरह बरस पड़ना
आग घर में कोई लगाये तो.
लोग सड़कों पे निकल आयेंगे
एक आवाज़ वो लगाये तो.
उनके कानों पे जूं न रेंगा पर
मेरी बातों पे तिलमिलाए तो.
फिर खुदा भी बचा न पायेगा
पाओं इक बार लडखडाये तो.
-----देवेंद्र गौतम