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बुधवार, 29 अगस्त 2012

कोयले की खान में दबकर रहा हीरा बहुत.


हर किसी की आंख में फिर क्यों नहीं चुभता बहुत.
कोयले की खान में दबकर रहा हीरा बहुत.

इसलिए मैं धीरे-धीरे सीढियां चढ़ता रहा
पंख कट जाते यहां पर मैं अगर उड़ता बहुत.

ज़िन्दगी इकबार भटकी तो भटकती ही गयी
सबने समझाया बहुत समझा मगर थोडा बहुत.

रात भर बिस्तर पे कोई करवटें लेता रहा
रातभर रोता रहा बिल्ली का एक बच्चा बहुत.

कुछ बताओ तो सही ये रोग कब मुझको लगा
मैं किसी की याद में कबतक रहा खोया बहुत.

वो किसी मजबूत कंधे की सवारी कर रहा है
वरना उसका इस कदर जमता नहीं सिक्का बहुत.

फिर अचानक धूप की किरनें ज़मीं पर आ गयीं
फिर अचानक चांद का चेहरा हुआ फीका बहुत.

हम तवज़्ज़ो दें न दें क्या फर्क पड़ता है उसे
उसकी फितरत है कि वो सुनता है कम, कहता बहुत.

---देवेंद्र गौतम

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

आखरी सांस बचाकर रखना

एक उम्मीद लगाकर रखना.
दिल में कंदील जलाकर रखना.

कुछ अकीदत तो बचाकर रखना.
फूल थाली में सजाकर रखना.

जिंदगी साथ दे भी सकती है
आखरी सांस बचाकर रखना.

पास कोई न फटकने पाए
धूल रस्ते में उड़ाकर रखना.

ये इबादत नहीं गुलामी है
शीष हर वक़्त झुकाकर रखना.

लफ्ज़ थोड़े, बयान सदियों का
जैसे इक बूंद में सागर रखना.

भीड़ से फर्क कुछ नहीं पड़ता
अपनी पहचान बचाकर रखना

----देवेंद्र गौतम


शनिवार, 18 अगस्त 2012

तुम उसकी गर्दन नहीं नाप सकते


(पूर्वोत्तर की भगदड़ पर)

ये भगदड़ मचाई है जिस भी किसी ने
उसे ये पता है
कि तुम उसकी गर्दन नहीं नाप सकते
कि अब तुममे पहली सी कुव्वत नहीं है
कभी हाथ इतने थे लंबे तुम्हारे
कि उड़ते परिंदों के पर गिन रहे थे
कोई सात पर्दों में चाहे छुपा हो
पकड़ कर दिखाते थे
पिंजड़े का रस्ता
मगर अब वो दमखम
कहीं भी नहीं है
कि अब आस्मां क्या
ज़मीं तक
तुम्हारी पकड़ में नहीं है
वो चलती हुई ट्रेन से लोग फेंके गए तो
कहो तुम कहां थे
कहां थी तुम्हारी
सुरक्षा व्यवस्था
तुम्हीं अब बता दो
कि तुम पर भरोसा करे भी अगर तो
 करे कोई कैसे....

---देवेंद्र गौतम

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

हुकूमत की चाबी.....

हकीकत यही है
ये हम जानते हैं
कि गोली चलने का कोई इरादा
तुम्हारा नहीं है.
कोई और है जो
तुम्हारे ही कंधे पे बंदूक रखकर
तुम्हीं को निशाना बनाता रहा है.
सभी ये समझते हैं अबतक यहां पर
जो दहशत के सामां दिखाई पड़े हैं
तुम्हीं ने है लाया .
तुम्हीं ने है लाया
मगर दोस्त!
सच क्या है
हम जानते हैं
कि इन सब के पीछे
कहीं तुम नहीं हो.....
फकत चंद जज्बों  के कमजोर धागे
जो उनकी पकड़ में
रहे हैं बराबर .
यही एक जरिया है जिसके  सहारे
अभी तक वो सबको नचाते रहे  हैं
ये तुम जानते हो
ये हम जानते हैं
तुम्हारी ख़ुशी से
तुम्हारे ग़मों से
उन्हें कोई मतलब न था और न होगा
उन्हें सिर्फ अपनी सियासत की मुहरें बिछाकर यहां पर
फकत चाल पर चाल चलनी है जबतक  
हुकूमत की चाबी नहीं हाथ आती
हकीकत यही है
ये तुम जानते हो
ये हम जानते हैं
हमारी मगर एक गुज़ारिश है तुमसे
अगर बात मानो
अभी एक झटके में कंधे से अपने
हटा दो जो बंदूक रखी हुई है
घुमाकर नली उसकी उनकी ही जानिब
घोडा दबा दो
उन्हें ये बता दो
कि कंधे तुम्हारे
हुकूमत लपकने की सीढ़ी नहीं हैं.

--देवेंद्र गौतम

सोमवार, 13 अगस्त 2012

कुछ नया हो तो सही

जलजला हो तो सही.
कुछ नया हो तो सही.

कुछ बुरा होने से पहले
कुछ भला हो तो सही.

दो के मिलने का नतीजा
तीसरा हो तो सही.

रोक लेंगे सब उड़ानें
पर कटा हो तो सही.

एक चुल्लू भी बहुत है
डूबना हो तो तो सही.

क्या छुपायें, क्या बताएं
कुछ पता हो तो सही.

हम लुटाने को लुटा दें
कुछ बचा हो तो सही.

मंजिलें मिल जायेंगी
रास्ता हो तो सही.

बांटने को बांट लेंगे
कुछ मिला हो तो सही.

फिर परिन्दें आ बसेंगे
घोंसला  हो तो सही.

थोड़ी खुशबू मांग लेंगे
गुल खिला हो तो सही.

मानता हूं घर बड़ा है
दिल बड़ा हो तो सही.

मिलने जुलने का भी कोई
सिलसिला हो तो सही.

इक नज़र में नाप लेंगे
सामना हो तो सही.

जिन्दगी आमद करेगी
बुलबुला हो तो सही.

अपने अंदर झांकने की
भावना हो तो सही.

आस्मां छोटा पड़ेगा
कद बड़ा हो तो सही.

हर जगह मौजूद है
उसको चाहो तो सही.

आज के बच्चों में थोडा
बचपना हो तो सही.

फिर कोई बैजू यहां पर
बावरा हो तो सही.

हम सभी देंगे शहादत
कर्बला हो तो सही.

क्या भला है क्या बुरा
फैसला हो तो सही.

हाशिये में हम रहेंगे
हाशिया हो तो सही.

मांग लायेंगे खुदाई
पर खुदा हो तो सही.

इंद्र का दरबार कर दें
अप्सरा हो तो सही.

और बढ़ जाएगी कुर्बत
फासला हो तो सही.

---देवेंद्र गौतम

शनिवार, 4 अगस्त 2012

लोकतंत्र का मर्सिया

तुमने कहा-
अब एक घाट पर पानी पीयेंगे
बकरी और बघेरे

इसी भ्रम में हलाल होती रहीं बकरियां
तृप्त होते रहे बघेरे.

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

हमने दुनिया देखी है

भूल-भुलैया देखी है.
हमने दुनिया देखी है.

उतने की ही बात करो
जितनी दुनिया देखी है.

हमने झिलमिल पानी में
अपनी काया देखी है.