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शनिवार, 11 मई 2013

किसी खुदा का हमें कोई डर नहीं होता

उसे कहीं भी भटकने का डर नहीं होता.
वो जिसके साथ कोई राहबर नहीं होता.

हम इस जहां में फकत आदमी से डरते हैं
किसी खुदा का हमें कोई डर नहीं होता.

न जाने कौन सी मिट्टी के बने होते हैं
किसी की बात का जिनपे असर नहीं होता

हरेक शख्स में इंसानियत नहीं होती
हरेक शख्स मगर जानवर नहीं होता.

वहां किसी पे भरोसा भी हो तो कैसे हो
खुद अपना साया जहां मोतबर नहीं होता.

न जाने कैसे दुआयें कुबूल होती हैं
मेरी दुआ का जरा भी असर नहीं होता.

कहीं पे कुछ तो हुआ है जो ऐसा आलम है
इतना वीरान तो कोई नगर नहीं होता.

----देवेंद्र गौतम

6 टिप्‍पणियां:

  1. दुआ-गो भी पलट के तकाज़ा करते हैं..,
    तेरी मुश्त ने दर्दमंदों को कितना बख्शा.....

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  2. हरेक शख्स में इंसानियत नहीं होती
    हरेक शख्स मगर जानवर नहीं होता.

    ...वाह! बहुत उम्दा ग़ज़ल...

    जवाब देंहटाएं
  3. हम इस जहां में फकत आदमी से डरते हैं
    किसी खुदा का हमें कोई डर नहीं होता.
    एक लाजवाब गज़ल का उम्दा शेर ... बही ही मज़ा आया गज़ल का ...

    जवाब देंहटाएं
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  5. अच्छी अच्छी ग़ज़लें कहना गौतम है आसान बहुत
    लेकिन गौतम ही जाने कैसे कह लेता है ये सब
    रमेश कँवल

    जवाब देंहटाएं

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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