चाल वो चलिए किसी को शक न हो.
बस मियां की दौड़ मस्जिद तक न हो.
सल्तनत आराम से चलती नहीं
सरफिरा जबतक कोई शासक न हो.
सांस लेने की इजाजत हो, भले
ज़िंदगी पर हर किसी का हक न हो.
खुश्क फूलों की अदावत के लिए
एक पत्थर हो मगर चकमक न हो.
रंग काला हो, कोई परवा नहीं
हाथ में उसके मगर मस्तक न हो.
तब तलक मत लाइए मैदान में
जब तलक वो दौड़ने लायक न हो.
-देवेंद्र गौतम
बस मियां की दौड़ मस्जिद तक न हो.
सल्तनत आराम से चलती नहीं
सरफिरा जबतक कोई शासक न हो.
सांस लेने की इजाजत हो, भले
ज़िंदगी पर हर किसी का हक न हो.
खुश्क फूलों की अदावत के लिए
एक पत्थर हो मगर चकमक न हो.
रंग काला हो, कोई परवा नहीं
हाथ में उसके मगर मस्तक न हो.
तब तलक मत लाइए मैदान में
जब तलक वो दौड़ने लायक न हो.
-देवेंद्र गौतम