हरेक सांस में आता है गाम-गाम धुआं.
बदल के रख दो मेरी जिंदगी का नाम धुआं.बहुत करीब है जैसे घुटन की रात कोई
उड़ा रही है मेरी बेबसी की शाम धुआं.
हरेक सम्त है कुहरा घना जिधर देखो
हुआ है आज तो जैसे कि बेलगाम धुआं.
किसी के अश्क बहे बोझ कम हुआ दिल का
चलो कि आज तो आया किसी के काम धुआं.
कहीं पे बैठ के कुछ दम लगा कि चैन मिले
उड़ा कभी-कभी वहशी जहाँ के नाम धुआं.
वो कौन लोग थे जो खो गए खलाओं में
गरीब जिस्म का है आखरी मुकाम धुआं.
कहां -कहां की फ़ज़ा याद आ गयी गौतम
ब-वक्ते-शाम जो देखा है नंगे-शाम धुआं..........देवेंद्र गौतम
गरीब जिस्म का... बहुत खूब रही...
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