सियासत चल पड़ी बन-ठन के बाबा!
हजारों फन हैं इस नागन के बाबा!अलग होता गया रेशे से रेशा
यही होने थे गठबंधन के बाबा!
वहीं चलकर जरा हम आंख सेंकें
जहां अंधे मिलें सावन के बाबा!
हमेशा मौत के सदके उठाये
रहेगी जिन्दगी से ठन के बाबा!
किनारा कर चुके हैं हर किसी से
न अब हम दोस्त न दुश्मन के बाबा!
ज़ेहानत है तो उसको वुस्वतें दें
दिखा दे अब हमें कुछ बन के बाबा!
---देवेंद्र गौतम
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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब
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