जेहनो-दिल में रेंगती हैं अनकही बातें बहुत.
दिन तो कट जातें हैं लेकिन सख्त हैं रातें बहुत.
तुम अभी से बदगुमां हो दोस्त! ये तो इब्तिदा है
जिंदगी की राह में होंगी अभी घातें बहुत.
दिल की पथरीली ज़मीं तो फिर भी खाली ही रही
सब्ज़ गालीचे बिछाने आयीं बरसातें बहुत.
कोई बतलाये कहां संजो के रखूं , क्या करूं
मेरी पेशानी पे हैं माजी की सौगातें बहुत.
उन दिनों भी उनसे इक दूरी सी रहती थी बनी
जिन दिनों आपस में होतीं थीं मुलाकातें बहुत.
देखना मैं बांधता हूं अब तखय्युल के तिलिस्म
तुम यहां दिखला चुके अपनी करामातें बहुत.
------देवेंद्र गौतम
दिन तो कट जातें हैं लेकिन सख्त हैं रातें बहुत.
तुम अभी से बदगुमां हो दोस्त! ये तो इब्तिदा है
जिंदगी की राह में होंगी अभी घातें बहुत.
दिल की पथरीली ज़मीं तो फिर भी खाली ही रही
सब्ज़ गालीचे बिछाने आयीं बरसातें बहुत.
कोई बतलाये कहां संजो के रखूं , क्या करूं
मेरी पेशानी पे हैं माजी की सौगातें बहुत.
उन दिनों भी उनसे इक दूरी सी रहती थी बनी
जिन दिनों आपस में होतीं थीं मुलाकातें बहुत.
देखना मैं बांधता हूं अब तखय्युल के तिलिस्म
तुम यहां दिखला चुके अपनी करामातें बहुत.
------देवेंद्र गौतम
"नदी -नेता "
जवाब देंहटाएंधनबल पर नदियाँ /
लगीं सिकुड़ने आज ?
चौकस पहरा पड़ा/
खूटा -खूटा खाप |
सूख -सिसकती नदी /
गंगा बहे असहाय |
बैठ चौतरा चौचक/
भांग धतूरा खाय |
पापी -पाप दुराचार /
घुल -नदिया -जाय |
अन्न ऊपर डाका पड़ा/
पावन नदिया बहती जाय |
जा बैठा पानी पाताले /
अफसर बैठ-बैठ हर्षाय ?
बढ़ी खाद्द्य पर सव्सीड़ी/
अधमुख अधिकारी मुस्काय !
दसो कनक अँगुलियों में /
नेता बैठे -बैठे खाय ??