जिधर देखूं तबाही का समां है.
मेरे चारो तरफ अक्से-रवां है.
खलाओं में कोई सूरत निहां है.
रफ़ाक़त के पशे-पर्दा अदावत
अज़ब रिश्ता हमारे दरमियां है.
जरा सोचो कदम रखने के पहले
तुम्हारी राह का पत्थर कहां है.
न मुझको याद है बीते दिनों की
न मेरे लब पे कोई दास्तां है.
मेरे सीने में अंगारे भरे हैं
मेरी आंखों में सदियों का धुआं है.
कदामत छा गयी सारी फ़ज़ा पर
मगर कुदरत का हर गोशा जवां है
----देवेंद्र गौतम
सलामत अब किसी का घर कहां है.
मेरे चारो तरफ अक्से-रवां है.
खलाओं में कोई सूरत निहां है.
रफ़ाक़त के पशे-पर्दा अदावत
अज़ब रिश्ता हमारे दरमियां है.
जरा सोचो कदम रखने के पहले
तुम्हारी राह का पत्थर कहां है.
न मुझको याद है बीते दिनों की
न मेरे लब पे कोई दास्तां है.
मेरे सीने में अंगारे भरे हैं
मेरी आंखों में सदियों का धुआं है.
कदामत छा गयी सारी फ़ज़ा पर
मगर कुदरत का हर गोशा जवां है
----देवेंद्र गौतम
जरा सोचो कदम रखने के पहले
जवाब देंहटाएंतुम्हारी राह का पत्थर कहाँ है.
वाह...इस बेजोड़ ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें...
नीरज
Ham bhi daad dete hain ..
जवाब देंहटाएंमेरे चारो तरफ अक्से-रवां है.
जवाब देंहटाएंखलाओं में कोई सूरत निहाँ है.
वाह!
बहुत खूब !