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रविवार, 19 जून 2011

ताजगी की इक इबारत.......

ताजगी की इक इबारत और क्या.   
मेरी बस इतनी सी चाहत और क्या.

बैठे-बैठे लिख रहा होगा खुदा
हम सभी लोगों की किस्मत और क्या.




जिंदगी भर की मशक्कत का सिला 
एक कागज़ की इमारत और क्या.

दूसरों के सर पे रख आते हैं हम 
अपने हिस्से की मुसीबत और क्या.

बर्फ़बारी में उठा लाये हैं हम 
सिर्फ थोड़ी सी हरारत और क्या.

--देवेंद्र गौतम   



The Hunger Games

22 टिप्‍पणियां:

  1. दूसरों के सर पे रख आते हैं हम
    अपने हिस्से की मुसीबत और क्या.


    -वाह!! बहुत खूब...

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  2. जिंदगी भर की मशक्कत का सिला
    एक कागज़ की इमारत और क्या.

    दूसरों के सर पे रख आते हैं हम
    अपने हिस्से की मुसीबत और क्या.

    bahut khoobsoorat !
    kya baat hai !!!!!!!

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  3. दूसरों के सर पे रख आते हैं हम
    अपने हिस्से की मुसीबत और क्या.

    बहुत खूबसूरती से कह दी यह बात ..सुन्दर गज़ल

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  4. बैठे-बैठे लिख रहा होगा खुदा
    हम सभी लोगों की किस्मत और क्या.
    mujhe dikh raha wo khuda

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  5. जिंदगी भर की मशक्कत का सिला
    एक कागज़ की इमारत और क्या.

    दूसरों के सर पे रख आते हैं हम
    अपने हिस्से की मुसीबत और क्या.
    वाह ...बहुत खूबसूरत शब्‍द रचना ।

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  6. बर्फ़बारी में उठा लाये हैं हम
    सिर्फ थोड़ी सी हरारत और क्या.
    'बर्फ़बारी में हरारत .....वाह! क्या बात है! बहुत खूब !

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  7. बर्फ़बारी में उठा लाये हैं हम
    सिर्फ थोड़ी सी हरारत और क्या

    ग़ज़ल के शेर ग़ज़ल की मुकम्मल
    दास्ताँ कह रहे हैं ....
    वाह !
    ताज़गी की एक इबारत और क्या
    बहुत खूब निभाया है .. वाह-वा !!

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  8. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 21 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच-- 51 ..चर्चा मंच

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  9. बैठे-बैठे लिख रहा होगा खुदा
    हम सभी लोगों की किस्मत और क्या...

    बहुत खूबसूरत शेर ... आपकी सोच का दायरा बहुत विस्तृत है जो गज़लों में नज़र आता है ...

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  10. बर्फ़बारी में उठा लाये हैं हम
    सिर्फ थोड़ी सी हरारत और क्या.

    लाजवाब है.....

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  11. बैठे-बैठे लिख रहा होगा खुदा
    हम सभी लोगों की किस्मत और क्या.

    जिंदगी भर की मशक्कत का सिला
    एक कागज़ की इमारत और क्या.

    बहुत सुन्दर गज़ल ..

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  12. दूसरों के सर पे रख आते हैं हम
    अपने हिस्से की मुसीबत और क्या.
    एकदम अलग अंदाज .जबरदस्त.

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  13. जिंदगी भर की मशक्कत का सिला
    एक कागज़ की इमारत और क्या...
    वाह! बहुत बढ़िया ! एक से बढ़कर एक शेर है! शानदार ग़ज़ल !

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  14. बर्फ़बारी में उठा लाये हैं हम
    सिर्फ थोड़ी सी हरारत और क्या.

    बहुत खूब

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  15. इस अति-सुन्दर ग़ज़ल के लिए आपको बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  16. बर्फ़बारी में उठा लाये हैं हम
    सिर्फ थोड़ी सी हरारत और क्या.

    ...बहुत खूब! लाज़वाब गज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा..

    जवाब देंहटाएं
  17. बेहतरीन शेर ...सभी के सभी...वाह...वाह...वाह...

    मन को छू लेने वाली रचना के लिए आपका आभार...

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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