जो नदी चट्टान से निकली नहीं है.
वो समंदर से कभी मिलती नहीं है.
हम हवाओं पे कमंदें डाल देंगे
ज़ुल्म की आंधी अगर रुकती नहीं है.
रास आ जाती हैं बेतरतीबियां भी
जिंदगी जब चैन से कटती नहीं है.
बादलों की ओट में सिमटा है सूरज
रात ढलकर भी अभी ढलती नहीं है.
अपने अंदर इस कदर डूबा हूं मैं
अब किसी की भी कमी खलती नहीं है.
वो समंदर से कभी मिलती नहीं है.
हम हवाओं पे कमंदें डाल देंगे
ज़ुल्म की आंधी अगर रुकती नहीं है.
रास आ जाती हैं बेतरतीबियां भी
जिंदगी जब चैन से कटती नहीं है.
बादलों की ओट में सिमटा है सूरज
रात ढलकर भी अभी ढलती नहीं है.
अपने अंदर इस कदर डूबा हूं मैं
अब किसी की भी कमी खलती नहीं है.
---देवेंद्र गौतम
हम हवाओं पे कमंदें डाल देंगे
जवाब देंहटाएंज़ुल्म की आंधी अगर रूकती नहीं है.
रास आ जाती हैं बेतरतीबियां भी
जिंदगी जब चैन से कटती नहीं है
बादलों की ओट में सिमटा है सूरज
रात ढलकर भी अभी ढलती नहीं है
बहुत ख़ूब !
ज़िंदगी की क़ौस ए क़ज़ह बिखेरती हुई ग़ज़ल
second one was good
जवाब देंहटाएंरास आ जाती हैं बेतरतीबियां भी
जवाब देंहटाएंजिंदगी जब चैन से कटती नहीं है.
w a a h !!