देखना ढह जायेंगे बेरब्त टीले खुद-ब-खुद.
फिर सिमट जायेंगे सब बिखरे कबीले खुद-ब-खुद.
कुछ करम मेरे जुनूं का, कुछ नवाज़िश आपकी
हो गए ज़ज़्बात के पैकर लचीले खुद-ब-खुद.
आपकी चाहत के बादल खुल के बरसे भी नहीं
ख्वाहिशों के हो गए पौधे सजीले खुद-ब-खुद.
इक जरा छलकी ही थी खुशरंग मौसम की शराब
तह-ब-तह खुलने लगे मंज़र नशीले खुद-ब-खुद.
तल्खिए-हालत से आंखें मेरी पथरा गयीं
अब तेरी यादों के होंगे जिस्म नीले खुद-ब-खुद.
बात क्या कहनी थी गौतम क्या लबों ने कह दिया
हो गए अल्फाज़ के पैकर नुकीले खुद-ब-खुद.
फिर सिमट जायेंगे सब बिखरे कबीले खुद-ब-खुद.
कुछ करम मेरे जुनूं का, कुछ नवाज़िश आपकी
हो गए ज़ज़्बात के पैकर लचीले खुद-ब-खुद.
आपकी चाहत के बादल खुल के बरसे भी नहीं
ख्वाहिशों के हो गए पौधे सजीले खुद-ब-खुद.
इक जरा छलकी ही थी खुशरंग मौसम की शराब
तह-ब-तह खुलने लगे मंज़र नशीले खुद-ब-खुद.
तल्खिए-हालत से आंखें मेरी पथरा गयीं
अब तेरी यादों के होंगे जिस्म नीले खुद-ब-खुद.
बात क्या कहनी थी गौतम क्या लबों ने कह दिया
हो गए अल्फाज़ के पैकर नुकीले खुद-ब-खुद.
-----देवेंद्र गौतम
कुछ करम मेरे जुनूं का, कुछ नवाज़िश आपकी
जवाब देंहटाएंहो गए ज़ज़्बात के पैकर लचीले खुद-ब-खुद
बड़ी बारीक़ी से
बहुत लचीला शेर कहा है जनाब...
बहुत दिलचस्प !
और
तह-ब-तह खुलने लगे मंज़र नशीले खुद-ब-खुद
सरूर की हदों को छू लेने वाला मिसरा...वाह !!
आपके एहसास को छू कर वो शरमा-से गए
लफ्ज़, बेशक हो रहे थे कुछ हठीले, खुद ब खुद
आपकी चाहत के बादल खुल के बरसे भी नहीं
जवाब देंहटाएंख्वाहिशों के हो गए पौधे सजीले खुद-ब-खुद.
बेहतरीन ग़ज़ल...हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।
बात क्या कहनी थी गौतम क्या लबों ने कह दिया
जवाब देंहटाएंहो गए अल्फाज़ के पैकर नुकीले खुद-ब-खुद.
बहुत खूब.
कुछ करम मेरे जुनूं का, कुछ नवाज़िश आपकी
जवाब देंहटाएंहो गए ज़ज़्बात के पैकर लचीले खुद-ब-खुद.
एक नज़ाकत पिन्हां है इस शेर में ,बहुत ख़ूब !
फिर सिमट जायेंगे सब बिखरे कबीले खुद-ब-खुद.
क्या बात है !