अब अपने आप को पतझड़ न दे बहार न दे.
जुदाई सख्त हो, इतना किसी को प्यार न दे.करीब आके मेरे दिल को बेक़रार न कर
उतर न पाए जो आंखों में वो खुमार न दे.
जो अपनी शक्ल पे खुशियों का इश्तेहार न दे.
फरेब खा के भी इन खुदपरस्त लोगों को
कभी भी अपनी सदाकत का ऐतबार न दे.
मैं फूल हूं प ये कितना अजीब मौसम है
के मुझको शाख पे खिलने का इख़्तियार न दे.
मैं अपनी जिंदगी तन्हा गुज़ार सकता हूं
कदम-कदम प मुझे कोई गमगुसार न दे.
मैं बुझती शम्मा हूं हर लम्हा खौफ है मुझको
वो अपने ताके-नज़र से कहीं उतार न दे.
मैं अपने दौर का गर्दो-गुबार हूं गौतम
बिखर ही जाऊंगा अब और इंतेशार न दे.
----देवेंद्र गौतम
मैं अपनी ज़िंदगी तन्हा गुज़ार सकता हूं
जवाब देंहटाएंक़दम-क़दम प मुझे कोई ग़मगुसार न दे.
मैं बुझती शम्मा हूं हर लम्हा ख़ौफ़ है मुझको
वो अपने ताक़ ए -नज़र से कहीं उतार न दे.
बहुत ख़ूब !सुबहान अल्लाह !
अब अपने आप को पतझड़ न दे बहार न दे.
जवाब देंहटाएंजुदाई सख्त हो, इतना किसी को प्यार न दे.
बहुत खूब ...
ग़ज़ल का हर शेर
अपनी मिसाल आप बन पडा है
बधाई
मुझे गम है कि आपकी इस ग़ज़ल को देर से पढ़ा.
जवाब देंहटाएंपर मैंने दिल से पढ़ा है.
आपके इस शेर पे मेरी शायरी कुर्बान.
मैं अपनी ज़िंदगी तन्हा गुज़ार सकता हूं
क़दम-क़दम प मुझे कोई ग़मगुसार न दे
उन हाथों का बोसा करलूं जिन्होंने यह शेर लिखा है .
सलाम.