मेरे जुनूं का परिंदा अभी उड़ान में है.
कहां से लायें अंधेरों से जूझने का रसूख
हमारे वक़्त का सूरज अभी ढलान में है.
मेरे सिवा भी कोई और इस मकान में है.
न पढ़ सकेगा, न सुनकर समझ सकेगा कोई
मेरी कहानी किसी और ही ज़बान में है.
हरेक जा उसे ढूंढा मगर मिला ही नहीं
वो एक शख्स जो हर एक दास्तान में है.
----देवेंद्र गौतम
इक और दिल भी धड़कता है मेरे सीने में
जवाब देंहटाएंमेरे सिवा भी कोई और इस मकान में है.
न पढ़ सकेगा, न सुनकर समझ सकेगा कोई
मेरी कहानी किसी और ही ज़बान में है.
bahut khoob !
waqai is zaban ko samajhna aasan nahin
एक और दिल भी धड़कता है मेरे सीने में
जवाब देंहटाएंमेरे सिवा भी कोई और इस मकान में है.
are waah... bahut badhiyaa
कहां से लायें अंधेरों से जूझने का रसूख
जवाब देंहटाएंहमारे वक़्त का सूरज अभी ढलान में है.
बेहतरीन देवेन्द्र भाई...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...ढेरों दाद कबूल करें...
नीरज
ज़मीं से दूर..बहुत दूर..आसमान में है.
जवाब देंहटाएंमेरे जुनूं का परिंदा अभी उड़ान में है.
वाह ...क्या मत्ला है .....
कहां से लायें अंधेरों से जूझने का रसूख
हमारे वक़्त का सूरज अभी ढलान में है.
बिलकुल अलग हट के .....
एक और दिल भी धड़कता है मेरे सीने में
मेरे सिवा भी कोई और इस मकान में है.
बधाई .....):
न पढ़ सकेगा, न सुनकर समझ सकेगा कोई
मेरी कहानी किसी और ही ज़बान में है.
अच्छा ....फ़ारसी भी आती है आपको ....? ):
बहुत सुंदर ग़ज़ल .....!!
हरकीरत हीर जी!
जवाब देंहटाएंनमस्कार!
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं. मेरा हौसला बढाया. इसके लिए शुक्रगुज़ार हूं. "किसी और ही ज़बान" का मतलब आपने फारसी से कैसे लगा लिया...?....मतलब साफ़ करने के लिए अपने दो शेर पेश कर रहा हूं----
+ये खामुशी भी तो खुद इक ज़बान होती है
मेरे सुकूत के अन्दर मेरा बयां निकला.
+उसने सदियों की दास्तां कह दी
एक लम्हे की बेज़ुबानी में.
अब आप समझ गयी होंगी कि मेरा इशारा किस ज़बान की तरफ था. बहरहाल स्नेह बनाये रखिये. इसकी मुझे सख्त ज़रूरत है.
देवेंद्र गौतम
इस्मत जैदी जी...रश्मि प्रभा जी....नीरज गोस्वामी जी! हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएं---देवेंद्र गौतम
akhir chacha kiske hai......
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