जाने किस उम्मीद के दर पे खड़ा था.
बंद दरवाज़े को दस्तक दे रहा था.
कोई मंजिल थी, न कोई रास्ता था
उम्र भर यूं ही भटकता फिर रहा था.
वो सितारों का चलन बतला रहे थे
मैं हथेली की लकीरों से खफा था.
मेरे अंदर एक सुनामी उठ रही थी
फिर ज़मीं की तह में कोई ज़लज़ला था.
इसलिए मैं लौटकर वापस न आया
अब न आना इस तरफ, उसने कहा था.
और किसकी ओर मैं उंगली उठाता
मेरा साया ही मेरे पीछे पड़ा था.
हमने देखा था उसे सूली पे चढ़ते
झूठ की नगरी में जो सच बोलता था.
उम्रभर जिसके लिए तड़पा हूं गौतम
दो घडी पहलू में आ जाता तो क्या था.
----देवेंद्र गौतम
बंद दरवाज़े को दस्तक दे रहा था.
कोई मंजिल थी, न कोई रास्ता था
उम्र भर यूं ही भटकता फिर रहा था.
वो सितारों का चलन बतला रहे थे
मैं हथेली की लकीरों से खफा था.
मेरे अंदर एक सुनामी उठ रही थी
फिर ज़मीं की तह में कोई ज़लज़ला था.
इसलिए मैं लौटकर वापस न आया
अब न आना इस तरफ, उसने कहा था.
और किसकी ओर मैं उंगली उठाता
मेरा साया ही मेरे पीछे पड़ा था.
हमने देखा था उसे सूली पे चढ़ते
झूठ की नगरी में जो सच बोलता था.
उम्रभर जिसके लिए तड़पा हूं गौतम
दो घडी पहलू में आ जाता तो क्या था.
----देवेंद्र गौतम
वाह..........
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल..
वो सितारों का चलन बतला रहे थे
मैं हथेली की लकीरों से खफा था.
लाजवाब!!!
और किसकी ओर मैं उंगली उठाता
जवाब देंहटाएंमेरा साया ही मेरे पीछे पड़ा था.
Bahut Umda...
bahut khoobsurat ghazal...
जवाब देंहटाएंवो सितारों का चलन बतला रहे थे
जवाब देंहटाएंमैं हथेली की लकीरों से खफा था.
बहुत खूबसूरत गजल
वाह!! बेहतरीन रचना!!
जवाब देंहटाएंवो सितारों का चलन बतला रहे थे
जवाब देंहटाएंमैं हथेली की लकीरों से खफा था.
achchha sher hai.
behtreen...
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंदो घडी पहलू में आ जाता तो क्या था ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब गौतम जी ... सभी शेर कमाल के लगे ... बहुत खास दिल में उतर जाते हैं ....
बहुत बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत खूब, कमाल का लिखते हैं ।
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