(पूर्वोत्तर की भगदड़ पर)
ये भगदड़ मचाई है जिस भी किसी ने
उसे ये पता है
कि तुम उसकी गर्दन नहीं नाप सकते
कि अब तुममे पहली सी कुव्वत नहीं है
कभी हाथ इतने थे लंबे तुम्हारे
कि उड़ते परिंदों के पर गिन रहे थे
कोई सात पर्दों में चाहे छुपा हो
पकड़ कर दिखाते थे
पिंजड़े का रस्ता
मगर अब वो दमखम
कहीं भी नहीं है
कि अब आस्मां क्या
ज़मीं तक
तुम्हारी पकड़ में नहीं है
वो चलती हुई ट्रेन से लोग फेंके गए तो
कहो तुम कहां थे
कहां थी तुम्हारी
सुरक्षा व्यवस्था
तुम्हीं अब बता दो
कि तुम पर भरोसा करे भी अगर तो
करे कोई कैसे....
---देवेंद्र गौतम
पूर्वोत्तर की दुर्दशा, हँसा काल का गाल |
जवाब देंहटाएंचढ़ा धर्म का गम-गलत, दे दरिया में डाल |
दे दरिया में डाल, रक्त से लाल हुई है |
फैले नित्य बवाल, व्यस्था छुई मुई है |
इच्छा शक्ति अभाव, भाव जिसको दो ज्यादा |
बनता वही वजीर, ऊंट घोडा गज प्यादा ||
क्या बात है रविकर जी....बहुत खूब! आपका एक कॉमेंट दस पोस्ट के बराबर होता है...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता...विचारणीय भाव है..
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
haqeekat bayan karti kavita,,,,,achchhi lagi
जवाब देंहटाएंsamyik mudde par sateek nazm...isi jagrookta kee jaroorat hai abhi ke daur me'n
जवाब देंहटाएंBadeehee sashakt rachana hai!
जवाब देंहटाएंसटीक !
जवाब देंहटाएंअपनी गर्दन बचाने में
लगा हो जो
उसे दूसरे की
गर्दन है कि नहीं
का कहाँ पता होता है
उसे तो बस अपनी गर्दन
का पता होता है ।
बहुत खूब ... गहरी और आक्रोश लिए आपकी नज्म ... सच के कितने करीब है ...
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