ग़म की धूप न खाओगे तो खुशियों की
बरसात न होगी.
दिन की कीमत क्या समझोगे जबतक काली रात
न होगी.
जीवन के इक मोड़ पे आकर हम फिर से मिल
जाएं भी तो
लब थिरकेंगे, दिल मचलेगा, पर आपस में बात न होगी.
पूरी बस्ती सन्नाटे की चादर ओढ़ के लेट
चुकी है
ऐसे में तूफान उठे तो कुछ हैरत की बात
न होगी.
हम अपने सारे मोहरों की चाल समझते हैं
साहब
बाजी अब चाहे जैसी हो लेकिन अपनी मात न
होगी.
जिस दिन उसमें नूर न होगा, आप उगेगा, आप ढलेगा
चांद तो होगा साथ में लेकिन तारों की बारात न होगी.
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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब
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