नज़र के सामने ऐसा कोई नज़ीर भी था ?
हरेक शाह के अंदर कोई फकीर भी था ?
वो अपने आप में रांझा ही नहीं हीर भी था.
बहुत ज़हीन था लेकिन जरा शरीर भी था.
किसे बचाते किसे मारकर निकल जाते
हमारे सामने प्यादा भी था वज़ीर भी था.
अना के नाम पे कुर्बानियां भी थीं लेकिन
हरेक हाट में बिकता हुआ जमीर भी था.
वहां पे सिर्फ नुमाइश लगी थी चेहरों की
किसी लिबास के अंदर कोई शरीर भी था?
मैं उसको छोड़ के जा भी तो नहीं सकता था
वो मेरा दोस्त भी था और बगलगीर भी था.
मगर सटीक निशाना नहीं था पहले सा
वही कमान, वही हाथ, वही तीर भी था.
-देवेंद्र गौतम
हरेक शाह के अंदर कोई फकीर भी था ?
वो अपने आप में रांझा ही नहीं हीर भी था.
बहुत ज़हीन था लेकिन जरा शरीर भी था.
किसे बचाते किसे मारकर निकल जाते
हमारे सामने प्यादा भी था वज़ीर भी था.
अना के नाम पे कुर्बानियां भी थीं लेकिन
हरेक हाट में बिकता हुआ जमीर भी था.
वहां पे सिर्फ नुमाइश लगी थी चेहरों की
किसी लिबास के अंदर कोई शरीर भी था?
मैं उसको छोड़ के जा भी तो नहीं सकता था
वो मेरा दोस्त भी था और बगलगीर भी था.
मगर सटीक निशाना नहीं था पहले सा
वही कमान, वही हाथ, वही तीर भी था.
-देवेंद्र गौतम