-देवेंद्र
गौतम
सबका
हुनर शुमार में लाया न जाएगा.
हर बीज
से दरख्त उगाया न जाएगा.
हर
शख्स का नसीब बनाया न जाएगा.
ये
जाम हर किसी को पिलाया न जाएगा.
हर
शख्स भले हाथ झटक ले जहान में
लेकिन
कभी भी छोड़के साया न जाएगा.
कैसे
पता चलेगा कि पिसना है सभी को
गेहूं
में अगर घुन को मिलाया न जाएगा.
महसूस
तो होगा कि मना लें चलो मगर
रूठे
हुओं को फिर भी मनाया न जाएगा.
दरिया
की हरेक मौज जिसे ढूंढती फिरे
वो शख्स
डूबने से बचाया न जाएगा.