किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़.. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़.
एक कत्आ
फूलों के पहलू में बैठे खंजर थे
चंदन के पेड़ों से लिपटे विषधर थे.
कितने जहरीले थे हमसे मत पूछो
जितना बाहर थे उतना ही अंदर थे.
-देवेंद्र गौतम
Bahut khoob...
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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.---ग़ालिब अच्छी-बुरी जो भी हो...प्रतिक्रिया अवश्य दें
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