समर्थक

बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

उनका सूरज ढल रहा है.

 

उनका सूरज ढल रहा है.

चक्र उल्टा चल रहा है.

 

खटमलों का एक कुनबा

कुर्सियों में पल रहा है.

 

आईने की आंख को भी

एक चेहरा खल रहा है.

 

मुट्ठियों में राख लेकर

हाथ अपने मल रहा है.

 

आग से जिसने भी खेला

घर उसी का जल रहा है.

 

इक तरफ होठों पे पपड़ी

इक तरफ जल-थल रहा है.

 

भाड़ में जाए ये दुनिया

काम अपना चल रहा है.

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

अच्छी-बुरी जो भी हो...प्रतिक्रिया अवश्य दें