किसी के पांव सिमटते नहीं हैं चादर में.
मैं ऐसा अब्र के जो आजतक भटकता हूं
वो एक नदी थी के जो मिल गयी समंदर में.
चलो के कुछ तो मिला है मुझे मुक़द्दर में.
वो अपनी जान से एक रोज हाथ धो बैठा
जो जान फूंकने निकला हरेक पत्थर में.
वो एक आग का गोला था और ज़द में था
मुझे मिला था ठिठुरते हुए दिसंबर में.
-----देवेंद्र गौतम
आदरणीय देवेंद्र गौतम जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन !
आपने आज भी शानदार ग़ज़ल लिखी है
मैं ऐसा अब्र के जो आज तक भटकता हूं
वो एक नदी थी के जो मिल गयी समंदर में.
एहसासात की रग़ों को छू गया है यह शे'र … बहुत ख़ूब !
वो एक आग का गोला था और ज़द में था
मुझे मिला था ठिठुरते हुए दिसंबर में.
क्या अंदाज़े-सुख़न है … !
हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल …
श्रेष्ठ लेखन के लिए आभार !
* हार्दिक शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
किसी के पांव सिमटते नहीं हैं चादर में.
जवाब देंहटाएंये अकेला मिसरा बहुत कुछ कहने में सक्षम है
मैं ऐसा अब्र के जो आजतक भटकता हूं
वो एक नदी थी के जो मिल गयी समंदर में.
बहुत ख़ूब !
एहसासात को अल्फ़ाज़ दे दिये हैं आप ने
हर एक शेर पर दाद कबूलें, वाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गजल
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति अपने आप में बहुत कुछ कहती हुई ..।
जवाब देंहटाएंवो अपनी जान से एक रोज हाथ धो बैठा
जवाब देंहटाएंजो जान फूंकने निकला हरेक पत्थर में.
वो एक आग का गोला था और ज़द में था
मुझे मिला था ठिठुरते हुए दिसंबर में.
मन को छू लेने वाली शानदार ग़ज़ल...
सभी शेर लाजवाब हैं.
बहुत खूबसूरत गज़ल कही है ...
जवाब देंहटाएंख़ुशी नहीं, न सही, उसकी आहटें ही सही
जवाब देंहटाएंचलो के कुछ तो मिला है मुझे मुक़द्दर में.
waah
भाई राजेंद्र स्वर्णकार जी, इस्मत जैदी जी, समीर लाल जी, योगेन्द्र पाल जी, सदा जी, डा.(सुश्री) शरद सिंह जी, संगीता स्वरूप जी, रश्मि प्रभा जी हौसला अफजाई के लिए आप सबका शुक्रगुज़ार हूं. इसी तरह स्नेह बनाये रक्खें यही गुज़ारिश है.
जवाब देंहटाएं---देवेंद्र गौतम
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 19 - 04 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
अजीब ख्वाहिशों का ज़लज़ला है घर-घर में.
जवाब देंहटाएंकिसी के पांव सिमटते नहीं हैं चादर में.
गौतम जी आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ । एक खूबसूरत गज़ल से मुलाकात हुई ।
संगीता स्वरुप (गीत) जी! चर्चा मंच में मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएं---देवेंद्र गौतम
श्रीमती आशा जोगेलकर जी!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है. आपको ग़ज़ल पसंद आई. मेरी हौसला-अफजाई हुई. कृपया स्नेह बनायें रखें.
---देवेंद्र गौतम
panktiya bhut kuch kahti hui... bhut sunder...
जवाब देंहटाएंमैं ऐसा अब्र के जो आज तक भटकता हूं
जवाब देंहटाएंवो एक नदी थी के जो मिल गयी समंदर में.
umda.....
sahityasurbhi.blogspot.com