ख्वाबों की धुंध में अभी रूपोश हैं सभी.
आंखें खुली हुई हैं प बेहोश हैं सभी.
तेरे असर से चार-सू रहता था शोरगुल
टूटा तेरा तिलिस्म तो खामोश हैं सभी.
कहने को जिंदगी से हमागोश हैं सभी.
हर गाम चीखता हूं प सुनता नहीं कोई
ये कैसा शहर है कि गरांगोश हैं सभी.
हिम्मत नहीं कि खौफ की दीवार तोड़ दें
हालांकि देखने में तो पुरजोश हैं सभी.
क्यों जुस्तजू की खाक उड़ाती है जिंदगी
इस शहरे-बेपनाह में रूपोश हैं सभी.
बाहर निकल के देख तो गौतम के क्या हुआ
क्या बात है कि रास्ते खामोश हैं सभी.
---देवेंद्र गौतम
गौतम जी,देर से पहुंचा.मुआफी चाहूँगा.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल है.
चारो तरफ हैं मौत की बाहें खुली हुईं
कहने को जिंदगी से हमागोश हैं सभी.
बहुत खूब.सलाम.
कहने को बचा क्या है ...
जवाब देंहटाएंइक अजब सा खामोश सफ़र है सुनता कोई नहीं पर बोलते हैं सभी ..
वाह वाह
क्यों जुस्तजू की खाक उड़ाती है जिंदगी
जवाब देंहटाएंइस शहरे-बेपनाह में रूपोश हैं सभी.
waah
हिम्मत नहीं कि खौफ की दीवार तोड़ दें
जवाब देंहटाएंहालांकि देखने में तो पुरजोश हैं सभी.
क्यों जुस्तजू की खाक उड़ाती है जिंदगी
इस शहरे-बेपनाह में रूपोश हैं सभी.
बाहर निकल के देख तो गौतम के क्या हुआ
क्या बात है कि रास्ते खामोश हैं सभी.
क्या शेर कहे हैं आपने, बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल है !आपकी ग़ज़लों का तो ज़वाब नहीं !
चारो तरफ़ हैं मौत की बाहें खुली हुईं
जवाब देंहटाएंकहने को जिंदगी से हम आग़ोश हैं सभी.
बहुत ख़ूब !
ज़िंदगी की हक़ीक़त का बयान बहुत सलीक़े से किया है आप ने