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शनिवार, 10 दिसंबर 2011

नज़र के सामने जो कुछ है अब सिमट जाये

ग़मों की धुंध जो छाई हुई है छंट जाये.
कुछ ऐसे ख्वाब दिखाओ कि रात कट जाये.

नज़र के सामने जो कुछ भी है सिमट जाये.
गर आसमान न टूटे, ज़मीं ही फट जाये.


गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

तमन्नाओं की नगरी को कहीं फिर से बसा लूंगा

तमन्नाओं की नगरी को कहीं फिर से बसा लूंगा.
यही दस्तूरे-दुनिया है तो खुद को बेच डालूंगा.

तुझे खंदक में जाने से मैं रोकूंगा नहीं लेकिन
जहां तक तू संभल पाए वहां तक तो संभालूंगा.


उसे मैं ढूंढ़ लाऊंगा जहां भी छुप के बैठा हो
मैं हर सहरा को छानूंगा, समंदर को खंगालूंगा

 दिखाऊंगा कि कैसे आस्मां  में छेद होता है
मैं एक पत्थर तबीयत से हवाओं में उछालूंगा .

मिलेगी कामयाबी हर कदम पर देखना गौतम
खुदा का  खौफ मैं जिस रोज भी दिल से निकालूंगा.

----देवेंद्र गौतम