तमन्नाओं की नगरी को कहीं फिर से बसा लूंगा.
यही दस्तूरे-दुनिया है तो खुद को बेच डालूंगा.
तुझे खंदक में जाने से मैं रोकूंगा नहीं लेकिन
जहां तक तू संभल पाए वहां तक तो संभालूंगा.
उसे मैं ढूंढ़ लाऊंगा जहां भी छुप के बैठा हो
मैं हर सहरा को छानूंगा, समंदर को खंगालूंगा
मिलेगी कामयाबी हर कदम पर देखना गौतम
खुदा का खौफ मैं जिस रोज भी दिल से निकालूंगा.
----देवेंद्र गौतम
यही दस्तूरे-दुनिया है तो खुद को बेच डालूंगा.
तुझे खंदक में जाने से मैं रोकूंगा नहीं लेकिन
जहां तक तू संभल पाए वहां तक तो संभालूंगा.
उसे मैं ढूंढ़ लाऊंगा जहां भी छुप के बैठा हो
मैं हर सहरा को छानूंगा, समंदर को खंगालूंगा
दिखाऊंगा कि कैसे आस्मां में छेद होता है
मैं एक पत्थर तबीयत से हवाओं में उछालूंगा .मिलेगी कामयाबी हर कदम पर देखना गौतम
खुदा का खौफ मैं जिस रोज भी दिल से निकालूंगा.
----देवेंद्र गौतम
बहुत शानदार रचना....वाह!!
जवाब देंहटाएंतुझे खंदक में जाने से मैं रोकूंगा नहीं लेकिन
जवाब देंहटाएंजहां तक तू संभल पाए वहां तक तो संभालूंगा.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल !!!
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंमैंने आपकी ग़ज़ल पढ़ी..बहुत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ ,आप कैसे इतना कुछ लिख लेते हैं
मैंने आपकी ग़ज़ल पढ़ी..बहुत अच्छी लगी..
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ,आप कैसे इतना कुछ लिख लेते हैं.
बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
प्रेरणा देती खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंजहां तक तू संभल पाए वहां तक तो संभालूंगा.
जवाब देंहटाएंवाह! वाह! बहुत उम्दा
दिखाऊंगा कि कैसे आसमाँ में छेद होता है
जवाब देंहटाएंमैं इक पत्थर तबियत से हवाओं में उछालूँगा
हर अच्छी खूबी और अच्छा ख़याल ,
अपने आस-पास से ही लिया जाता है
और उस खूबी को अलफ़ाज़ में ढाल पाना ही
फन की ख़ूबसूरती बन जाता है
एक खूबसूरत ग़ज़ल पर बधाई...!
सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसदा जी की हलचल से आपकी इस पोस्ट पर
आकर बहुत अच्छा लगा.
आभार.