खून में डूबे हुए थे रास्ते सब इस नगर के.
हम जो गलियों में छुपे थे, घाट के थे और न घर के.
ठीक था सबकुछ यहां तो लोग अपनी हांकते थे
खतरा मंडराने लगा तो चल दिए इक-एक कर के.
हादिसा जब कोई गुज़रा या लुटा जब चैन दिल का
मैनें समझा कोई रावण ले गया सीता को हर के.
अपने तलवे थामकर इक रोज वो कहने लगा
चांदनी रातों में भी सब जायके हैं दोपहर के.
शुहरत, दौलत और ताक़त, जिंदगी भर की सियासत
गौर से देखा तो जाना सब छलावे हैं नज़र के.
----देवेंद्र गौतम
हम जो गलियों में छुपे थे, घाट के थे और न घर के.
ठीक था सबकुछ यहां तो लोग अपनी हांकते थे
खतरा मंडराने लगा तो चल दिए इक-एक कर के.
हादिसा जब कोई गुज़रा या लुटा जब चैन दिल का
मैनें समझा कोई रावण ले गया सीता को हर के.
अपने तलवे थामकर इक रोज वो कहने लगा
चांदनी रातों में भी सब जायके हैं दोपहर के.
शुहरत, दौलत और ताक़त, जिंदगी भर की सियासत
गौर से देखा तो जाना सब छलावे हैं नज़र के.
----देवेंद्र गौतम
बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंbahut badiya kathan
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... सामयिक और सार्थक शेर हैं इस गज़ल के ...
जवाब देंहटाएंशोहरत, दौलत और ताक़त, जिंदगी भर की सियासत
जवाब देंहटाएंगौर से देखा तो जाना सब छलावे हैं नज़र के...waakai, bahut badhiyaa
क्या बात है. बेहतरीन गज़ल.
जवाब देंहटाएंसादर.
खून में डूबे हुए थे रास्ते सब इस नगर के.
जवाब देंहटाएंहम जो गलियों में छुपे थे, घाट के थे और न घर के.
वाह !बहुत ख़ूब !!
बहुत बढ़िया ..
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब कहा है
जवाब देंहटाएंमन में बसे अच्छे खयालात का
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा इज़हार !
वाह !!