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शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

आते हुए तूफ़ान को.....

आते हुए तूफ़ान को छूने की जिद न कर.
रहने दे आसमान को छूने की जिद न कर.


रह-रह के टीसता है मेरी उंगलियों का जख्म
अब तीर और कमान को छूने की जिद न कर.


मलवे में दफ्न होंगी किस-किस की ख्वाहिशें
उजड़े हुए मकान को छूने की जिद न कर.


कडवी है कि मीठी है जैसी भी है अपनी है
नाहक मेरी जुबान को छूने की जिद न कर.


तुझको पता है जो कहेंगे झूट कहेंगे
अब गीता और कुरआन को छूने की जिद न कर.


----देवेन्द्र गौतम

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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