आते हुए तूफ़ान को छूने की जिद न कर.
रहने दे आसमान को छूने की जिद न कर.
रह-रह के टीसता है मेरी उंगलियों का जख्म
अब तीर और कमान को छूने की जिद न कर.
मलवे में दफ्न होंगी किस-किस की ख्वाहिशें
उजड़े हुए मकान को छूने की जिद न कर.
कडवी है कि मीठी है जैसी भी है अपनी है
नाहक मेरी जुबान को छूने की जिद न कर.
तुझको पता है जो कहेंगे झूट कहेंगे
अब गीता और कुरआन को छूने की जिद न कर.
----देवेन्द्र गौतम
रहने दे आसमान को छूने की जिद न कर.
रह-रह के टीसता है मेरी उंगलियों का जख्म
अब तीर और कमान को छूने की जिद न कर.
मलवे में दफ्न होंगी किस-किस की ख्वाहिशें
उजड़े हुए मकान को छूने की जिद न कर.
कडवी है कि मीठी है जैसी भी है अपनी है
नाहक मेरी जुबान को छूने की जिद न कर.
तुझको पता है जो कहेंगे झूट कहेंगे
अब गीता और कुरआन को छूने की जिद न कर.
----देवेन्द्र गौतम
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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब
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