बोझ बेमंजरी का ढोने दे.
खुश्क आखों को कुछ भिंगोने दे.
हम भी चेहरा बदल के निकलेंगे
शाम ढलने दे, रात होने दे.
उसके तलवों में जान आएगी
एक कांटा जरा चुभोने दे.
सब्ज़ हो जाएगी जमीं इक दिन
आसमानों को सुर्ख होने दे.
हर नई बात मान लें कैसे
कुछ रिवाजों का बोझ ढोने दे.
----देवेन्द्र गौतम
खुश्क आखों को कुछ भिंगोने दे.
हम भी चेहरा बदल के निकलेंगे
शाम ढलने दे, रात होने दे.
उसके तलवों में जान आएगी
एक कांटा जरा चुभोने दे.
सब्ज़ हो जाएगी जमीं इक दिन
आसमानों को सुर्ख होने दे.
हर नई बात मान लें कैसे
कुछ रिवाजों का बोझ ढोने दे.
----देवेन्द्र गौतम
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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब
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