आस्मां से कह रही है उलझनों की सरज़मीं.
लाख पैगम्बर हुए दुनिया वहीँ की है वहीँ.
पेड़-पौधे कट रहे हैं, खेत भी सूखे पड़े
गोद खाली कर रही है आजकल अपनी ज़मीं.
हर किसी ने हर किसी को हर तरफ धोखा दिया
अब किसी की बात पर कैसे करे कोई यकीं.
वक़्त इक ऐसा भी था कि रात-दिन का साथ था
वक़्त इक ऐसा भी है कि तुम कहीं और हम कहीं.
अब मेरे दिल में कोई रहता नहीं तो क्या हुआ
ये ज़रूरी तो नहीं कि हर मकां में हो मकीं.
----देवेंद्र गौतम
लाख पैगम्बर हुए दुनिया वहीँ की है वहीँ.
पेड़-पौधे कट रहे हैं, खेत भी सूखे पड़े
गोद खाली कर रही है आजकल अपनी ज़मीं.
हर किसी ने हर किसी को हर तरफ धोखा दिया
अब किसी की बात पर कैसे करे कोई यकीं.
वक़्त इक ऐसा भी था कि रात-दिन का साथ था
वक़्त इक ऐसा भी है कि तुम कहीं और हम कहीं.
अब मेरे दिल में कोई रहता नहीं तो क्या हुआ
ये ज़रूरी तो नहीं कि हर मकां में हो मकीं.
----देवेंद्र गौतम
लाख पैगम्बर हुए दुनिया वहीँ की है वहीँ.
जवाब देंहटाएंये सोच अच्छी लगी
वक़्त इक ऐसा भी था कि रात-दिन का साथ था
जवाब देंहटाएंवक़्त इक ऐसा भी है कि तुम कहीं और हम कहीं.
हर किसी ने हर किसी को हर तरफ धोखा दिया
अब किसी की बात पर कैसे करे कोई यकीं.
बहुत ख़ूब !