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गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

रहगुज़र नक़्शे-कफे-पा से........

रहगुज़र नक़्शे-कफे-पा से तही रह जाएगी.
जिंदगी फिर जिंदगी को ढूंढती रह जाएगी.

मैं चला जाऊंगा अपनी प्यास होटों पर लिए
मुद्दतों दरिया में लेकिन खलबली रह जाएगी.

झिलमिलाती साअतों की रहगुज़र पे मुद्दतों
रौशनी शाम-ओ-सहर की कांपती रह जाएगी.

दिन के आंगन में सजीली धूप रौशन हो न हो
रात के दर पर शिकस्ता चांदनी रह जाएगी.

रौशनी की बारिशें हर सम्त से होंगी मगर
मेरी आँखों में फ़रोज़ां तीरगी रह जाएगी.

लम्हा-लम्हा रायगां  होते रहेंगे रोजो-शब
इस सफ़र में मेरे पीछे इक सदी रह जाएगी.

चाहे जितनी नेमतें हमपे बरस जाएं  मगर
जिंदगी में फिर भी गौतम कुछ कमी रह जाएगी.

-----देवेन्द्र गौतम

1 टिप्पणी:

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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