मुख्तलिफ रंगों का इक सैले -रवां काबू में था.
इक अज़ब खुशरंग सा साया मेरे पहलू में था.
कुछ नहीं तो इन अंधेरों से झगड़ लेता जरा
जोर इतना कब किसी सहमे हुए जुगनू में था.
कल न जाने कौन सी मंजिल पे जा पहुंचा था मैं
जिंदगी के हाथ में या मौत के पहलू में था.
एक झोंके में कई चेहरे बरहना हो गए
राज़ किस-किस का निहां उस फूल की खुशबू में था.
खामुशी हर बोल पे पहरों बिखरती ही गयी
छोड़कर जाता कहां मुझको वो हमसाया मेरा
शोरो-हंगामा से निकला तो सदाए-हू में था.
बस कि गौतम अब मुझे कुछ याद आता ही नहीं
कौन था वो शख्स जो बरसों मेरे पहलू में था.
------देवेन्द्र गौतम
इक अज़ब खुशरंग सा साया मेरे पहलू में था.
कुछ नहीं तो इन अंधेरों से झगड़ लेता जरा
जोर इतना कब किसी सहमे हुए जुगनू में था.
कल न जाने कौन सी मंजिल पे जा पहुंचा था मैं
जिंदगी के हाथ में या मौत के पहलू में था.
एक झोंके में कई चेहरे बरहना हो गए
राज़ किस-किस का निहां उस फूल की खुशबू में था.
खामुशी हर बोल पे पहरों बिखरती ही गयी
रक्स का सारा मज़ा बजते हुए घुंघरू में था.
छोड़कर जाता कहां मुझको वो हमसाया मेरा
शोरो-हंगामा से निकला तो सदाए-हू में था.
बस कि गौतम अब मुझे कुछ याद आता ही नहीं
कौन था वो शख्स जो बरसों मेरे पहलू में था.
------देवेन्द्र गौतम
आदरणीय गौतम जी,
जवाब देंहटाएंआपकी चंद गजलें पढीं.
तनकीद की तो बात छोडिये ,तारीफ़ के लिए अलफ़ाज़ नहीं मिलते.
पूरी ग़ज़ल में ये नहीं ढूंढता कि कौन सा शेर सबसे अच्छा है,बल्कि ये ढूंढता हूँ कि कौन सा शेर पसंद नहीं आया.
पर कभी भी सफल नहीं हो पाया.
आपकी हर ग़ज़ल मुकम्मिल है,आपकी शायरी मुकम्मिल है.
तहे दिल से सलाम.
भाई sagebob साहेब
जवाब देंहटाएंमेरी ग़ज़लें आपको पसंद आयीं. मेरा हौसला बढ़ा. स्नेह बनाये रखे. यही गुज़ारिश है .
गौतम जी ,, एक और कामयाब ग़ज़ल !!
जवाब देंहटाएंहर बार बस एक ही दिक्क़त पेश रहती है
कि ऐसे उम्दा और मेआरी अशार के लिए
वो मुनासिब लफ्ज़ किस तरह ढून्ढ पाऊँ ...
और
खामुशी हर बोल पे पहरों बिखरती ही गयी
रक्स का सारा मज़ा बजते हुए घुँघरू में था.
ये शेर तो आपकी पुख्ता बानगी की बेहतरीन मिसाल हो गया है
वाह - वा !!
सलाम .
शुक्रिया दानिश भाई!
जवाब देंहटाएंखामुशी हर बोल पे पहरों बिखरती ही गयी
जवाब देंहटाएंरक़्स का सारा मज़ा बजते हुए घुँघरू में था.
हासिले ग़ज़ल इस शेर की तारीफ़ के लिये मेरे पास अल्फ़ाज़ नहीं हैं
यूं तो पूरी ग़ज़ल ही उम्दा है लेकिन ये शेर ख़ुद को बार बार पढ़वाने में कामयाब है
मुबारक हो !
शुक्रिया इस्मत जी!
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं तो इन अंधेरों से झगड़ लेता जरा
जवाब देंहटाएंजोर इतना कब किसी सहमे हुए जुगनू में था।
इस शेर का जलवा ही कुछ और है।
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद स्वीकार करें।
क्या बात है!...... बहुत खूब!....हर शेर लाजवाब
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