ये और बात के लफ़्ज़ों की बेहिजाबी थी.
मेरे लबों प तो जो बात थी किताबी थी.
तबाह कर दिया मौसम की ज़र्दपोशी ने
हमारे शहर की रंगत कभी गुलाबी थी.
तमाम जिस्म थे मलबूसे-जां समेटे हुए
हमारी आंखों के सहरा में बेहिजाबी थी.
मैं हर्फ़-हर्फ़ था बिखरा हुआ वरक-ब-वरक
के मेरे अहद की तकदीर ही किताबी थी.
शिकस्त खाता हूं हर लम्हा अब, मगर पहले
कदम-कदम प मेरे साथ कामयाबी थी.
बुझा-बुझा था मैं बेकैफ मौसमों की तरह
हरेक सम्त की आबो-हवा शराबी थी.
मुझे किसी की शराफत प शक न था गौतम
मैं जानता हूं के मुझमें ही कुछ खराबी थी.
मेरे लबों प तो जो बात थी किताबी थी.
तबाह कर दिया मौसम की ज़र्दपोशी ने
हमारे शहर की रंगत कभी गुलाबी थी.
तमाम जिस्म थे मलबूसे-जां समेटे हुए
हमारी आंखों के सहरा में बेहिजाबी थी.
मैं हर्फ़-हर्फ़ था बिखरा हुआ वरक-ब-वरक
के मेरे अहद की तकदीर ही किताबी थी.
शिकस्त खाता हूं हर लम्हा अब, मगर पहले
कदम-कदम प मेरे साथ कामयाबी थी.
बुझा-बुझा था मैं बेकैफ मौसमों की तरह
हरेक सम्त की आबो-हवा शराबी थी.
मुझे किसी की शराफत प शक न था गौतम
मैं जानता हूं के मुझमें ही कुछ खराबी थी.
---देवेंद्र गौतम
मैं हर्फ़-हर्फ़ था बिखरा हुआ वरक-ब-वरक
जवाब देंहटाएंके मेरे अहद की तकदीर ही किताबी थी.
शिकस्त खाता हूं हर लम्हा अब, मगर पहले
कदम-कदम प मेरे साथ कामयाबी थी.
bahut khoob !
umda ghazal!
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल है.
जवाब देंहटाएंमैं हर्फ़-हर्फ़ था बिखरा हुआ वरक-ब-वरक
के मेरे अहद की तकदीर ही किताबी थी.
वाह!बहुत खूब.
सलाम.
vaah , bahut hi badhiya gazal ..
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