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बुधवार, 27 अप्रैल 2011

ज़रूरत हर किसी की.....

ज़रूरत हर किसी की हर किसी के सामने लाना.
नदी सूखे तो दरिया को नदी के सामने लाना.

अंधेरे और उजाले का खुले कुछ भेद हमपर भी 
अगर नेकी मिले तुमको बदी के सामने लाना.


अभी तो खुश्क है मौसम जरा बरसात आने दो 
लबों को फिर कभी तिश्नालबी के सामने लाना.

समझ जाओगे क़तरा क्या है, दरिया क्या, समंदर क्या 
कोई ख्वाहिश मेरी दरियादिली के सामने लाना.

किसी लम्हे ने मुझको आजतक अपना नहीं समझा 
हरेक लम्हे को चाहा था सदी के सामने लाना.

वो जिस रस्ते से गुज़रा है उसी की दास्तां कहना 
उसी के नक्शे-पा गौतम उसी के सामने लाना. 

---देवेंद्र गौतम  

10 टिप्‍पणियां:

  1. किसी लम्हे ने मुझको आजतक अपना नहीं समझा
    हरेक लम्हे को चाहा था सदी के सामने लाना.
    वाह बहुत खूब। गौतम जी गज़ल बहुत अच्छी लगी।धन्यवाद।

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  2. किसी लम्हे ने मुझको आजतक अपना नहीं समझा
    हरेक लम्हे को चाहा था सदी के सामने लाना.
    bahut hi gahri chaah

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  3. ज़रूरत हर किसी की हर किसी के सामने लाना.
    नदी सूखे तो दरिया को नदी के सामने लाना.


    वाह! क्या खूबसूरत गजल कही है आपने !...
    सरल शब्दों में जीवन के मूल्यों का सार बखूबी सामने रख दिया है....

    आपको हार्दिक बधाई।

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  4. वाह! क्या खूबसूरत गजल कही है आपने| धन्यवाद।

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  5. समझ जाओगे क़तरा क्या है,दरिया क्या,समंदर क्या कोई ख्वाहिश मेरी दरियादिली के सामने लाना

    waah !
    la jawaab !!
    bahut khoobsurat gazal !!!

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  6. रबे दिल का अरमान मैं रोक न पाया |
    तुझसे प्यार किया प्यार का इज़हार रोक न पाया |
    इनकार तेरा आया मैं सहन कर न पाया |
    दहलीज़ पर खड़ा तेरी दुबारा इज़हार करने आया |

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  7. किसी लम्हे ने मुझको आजतक अपना नहीं समझा
    हरेक लम्हे को चाहा था सदी के सामने लाना.

    बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ।

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  8. समझ जाओगे क़तरा क्या है, दरिया क्या, समंदर क्या
    कोई ख़्वाहिश मेरी दरियादिली के सामने लाना.

    बहुत ख़ूबसूरत !
    हासिल ए ग़ज़ल शेर

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  9. समझ जाओगे क़तरा क्या है, दरिया क्या, समंदर क्या
    कोई ख्वाहिश मेरी दरियादिली के सामने लाना.

    किसी लम्हे ने मुझको आजतक अपना नहीं समझा
    हरेक लम्हे को चाहा था सदी के सामने लाना.

    वाह वाह वाह| देवेन्द्र गौतम जी बहुत ही जबरदस्त| दो पंक्तियों में सब कुछ| बधाई स्वीकार करें|

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  10. किसी लम्हे ने मुझको आजतक अपना नहीं समझा
    हरेक लम्हे को चाहा था सदी के सामने लाना.

    बहुत खूब गौतम जी ... लाजवाब ग़ज़ल है ... हर शेर क़ाबिले तारीफ ...

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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