समर्थक

बुधवार, 17 अगस्त 2011

हर लम्हा जो करीब था........

हर लम्हा जो करीब था वो बदगुमां मिला.
उजड़ा हुआ ख़ुलूस ही हरसू रवां मिला.

सर पे किसी भी साये की हसरत नहीं रही
मुझपे गिरा है टूट के जो आस्मां मिला.

उडती हुई सी खाक हूं अपना किसे कहूं
हर शख्स अपने आप में कोहे-गरां मिला. 

बैठे हुए थे डालियों पे बेनवां परिन्द 
उजड़े हुए से बाग़ में जब आशियां मिला.

वहमों-गुमां की धुंध में खोया हुआ हूं मैं
मुझको किसी यकीन का सूरज कहाँ मिला.

गौतम उसे सुकून की दौलत नसीब हो 
जिसके करम से मुज्महिल तर्ज़े-बयां मिला.

---देवेंद्र गौतम 

11 टिप्‍पणियां:

  1. सर पे किसी भी साये की हसरत नहीं रही
    मुझपे गिरा है टूट के जो आस्मां मिला.

    बहुत खूब...दिल को छू लेने वाला शेर.
    पूरी ग़ज़ल भी शानदार है.

    जवाब देंहटाएं
  2. हर लम्हा जो करीब था वो बदगुमां मिला.
    उजड़ा हुआ ख़ुलूस ही हरसू रवां मिला.
    bahut shandaar gazalen hain aapki

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं गजल की तकनीकियों पर तो कोई बात कहने में सक्षम नहीं हूँ ,पर हर शेर का विषय अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं
  4. वहमों-गुमां की धुंध में खोया हुआ हूं मैं
    मुझको किसी यकीन का सूरज कहाँ मिला.

    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
    दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मना ले ईद.
    ईद मुबारक
    कुँवर कुसुमेश

    जवाब देंहटाएं
  6. पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
    ***************************************************

    "आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"

    जवाब देंहटाएं

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

अच्छी-बुरी जो भी हो...प्रतिक्रिया अवश्य दें