ऐसी सूरत चांदनी की.
नींद उड़ जाये सभी की.
एक लम्हा जानते हैं
बात करते हैं सदी की.
हम किनारे जा लगेंगे
मंजिलों ने आंख फेरी
रास्तों ने बेरुखी की.
जंग जारी है मुसलसल
आजतक नेकी बदी की.
जाने ले जाये कहां तक
अब ज़रुरत आदमी की.
अब ज़रूरत ही नहीं है
आदमी को आदमी की.
एक जुगनू भी बहुत है
क्या ज़रूरत रौशनी की.
---देवेंद्र गौतम
वाह!! क्या बात है!!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंसर! आपके शेर तो...देखन को छोटे लगे घाव करे गंभीर
जवाब देंहटाएंजाने ले जाये कहां तक
जवाब देंहटाएंअब ज़रुरत आदमी की.
अब ज़रूरत ही नहीं है
आदमी को आदमी की.
एक जुगनू भी बहुत है
क्या ज़रूरत रौशनी की.
क्या बात है भाई....बहुत खूब!
वाह ... बहुत खूब।
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