समर्थक

बुधवार, 28 नवंबर 2012

काटने लगता है अपना ही मकां शाम के बाद

यूं  तेरी यादों की कश्ती है रवां शाम के बाद.
जैसे वीरान जज़ीरे में धुआं शाम के बाद.

चंद लम्हे जो तेरे साथ गुजारे थे  कभी
ढूंढ़ता हूं उन्हीं लम्हों के निशां शाम के बाद.

एक-एक करके हरेक जख्म उभर आता है
दिल के जज़्बात भी होते हैं जवां शाम के बाद.

कभी माज़ी कभी फर्दा की कसक उठती है
काटने लगता है अपना ही मकां शाम के बाद.

बारहा दिन में उभर आता है तारों का निजाम
बारहा सुब्ह का होता है  गुमां शाम के बाद.

मेरे होठों पे बहरहाल खमोशी ही रही
लोग कहते हैं कि खुलती है ज़बां शाम के बाद.

----देवेंद्र गौतम

11 टिप्‍पणियां:

  1. bahut badhiya...jaise jo bhi bolo ..sab dhalta jata hai shayri me...ahsas piro rakkhe hain lakhni ne syaahi ke bad..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िय ग़ज़ल
    सभी शेर एक से बढ़कर एक

    जवाब देंहटाएं
  3. Good day! This is my first visit to your blog!
    We are a group of volunteers and starting a new project in a community in the same niche.
    Your blog provided us useful information to work on.

    You have done a outstanding job!
    Also visit my web site : upright golf swing tips

    जवाब देंहटाएं
  4. Good day! I just wish to offer you a big thumbs up for your excellent
    information you've got here on this post. I'll be returning to your
    site for more soon.
    Here is my page ; lose weight fast after baby

    जवाब देंहटाएं
  5. Great blog right here! Additionally your website loads up very fast!
    What host are you the usage of? Can I am getting your associate hyperlink for your host?
    I wish my website loaded up as quickly as yours lol
    Feel free to visit my website ; adjustable dumbbells set

    जवाब देंहटाएं
  6. हर ग़ज़ल के शेर अपने वज़न के अनुसार माजी की यादों को सामने कुरेदता है ... बहुत अच्छा

    जवाब देंहटाएं


  7. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




    मेरे होठों पे बहरहाल खमोशी ही रही
    लोग कहते हैं की खुलती है ज़बां शाम के बाद

    वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !
    क्या बात है !

    आदरणीय देवेंद्र गौतम जी
    पूरी ग़ज़ल काबिले-तारीफ़ है
    आपके ब्लॉग पर आकर आनंद आ जाता है ...

    आप स्वस्थ रहें और आपकी लेखनी सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन का सारस्वत प्रसाद बांटती रहे …

    नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ◄▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼►

    जवाब देंहटाएं

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

अच्छी-बुरी जो भी हो...प्रतिक्रिया अवश्य दें