कु़दरत की मस्ती को कायम रहने दो.
मत बांधो, सारी नदियों को बहने दो.
आसमान को चाहो तो छू सकते हो
धरती को अपनी धूरी पर रहने दो.
बंगला-गाड़ी की उसको दरकार नहीं
रौशनदान में गोरैया को रहने दो.
बुरे-भले का फर्क जमाना कर लेगा
हम जो कहना चाह रहे हैं, कहने दो.
हम तो उनकी ईंट से ईंट बजा देंगे
जुल्मो-सितम जिनको सहना है सहने दो
लॉकर में रखना है तो क्या फर्क उन्हें
सोने, चांदी या पीतल के गहने दो.
वीरानी में डूबे घर का क्या करना
दरक-दरक कर दीवारों को ढहने दो.
--देवेंद्र गौतम
मत बांधो, सारी नदियों को बहने दो.
आसमान को चाहो तो छू सकते हो
धरती को अपनी धूरी पर रहने दो.
बंगला-गाड़ी की उसको दरकार नहीं
रौशनदान में गोरैया को रहने दो.
बुरे-भले का फर्क जमाना कर लेगा
हम जो कहना चाह रहे हैं, कहने दो.
हम तो उनकी ईंट से ईंट बजा देंगे
जुल्मो-सितम जिनको सहना है सहने दो
लॉकर में रखना है तो क्या फर्क उन्हें
सोने, चांदी या पीतल के गहने दो.
वीरानी में डूबे घर का क्या करना
दरक-दरक कर दीवारों को ढहने दो.
--देवेंद्र गौतम
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-05-2014) को "पंक में खिला कमल" (चर्चा मंच-1615) (चर्चा मंच-1614) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह. सुन्दर रचना। ग़ज़ल के कुछ शेर बहुत उम्दा हैं. दाद कबूल करें.
जवाब देंहटाएंसभी अच्छे लगे .
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना .
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