जो यकीं रखते नहीं घरबार में.
उनकी बातें किसलिए बेकार में.
दर खुला, न कोई खिड़की ही खुली
सर पटककर रह गए दीवार में.
बस्तियां सूनी नज़र आने लगीं
आदमी गुम हो गया बाजार में.
पांव ने जिस दिन जमीं को छू लिया
ज़िंदगी भी आ गई रफ्तार में.
बांधकर रखा नहीं होता अगर
हम भटक जाते किसी के प्यार में.
एक बाजी खेलकर जाना यही
जीत से ज्यादा मज़ा है हार में.
उनकी बातें किसलिए बेकार में.
दर खुला, न कोई खिड़की ही खुली
सर पटककर रह गए दीवार में.
बस्तियां सूनी नज़र आने लगीं
आदमी गुम हो गया बाजार में.
पांव ने जिस दिन जमीं को छू लिया
ज़िंदगी भी आ गई रफ्तार में.
बांधकर रखा नहीं होता अगर
हम भटक जाते किसी के प्यार में.
एक बाजी खेलकर जाना यही
जीत से ज्यादा मज़ा है हार में.
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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब
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