चार तिनकों का
आशियाना हुआ,
आंधियों में मेरा ठिकाना हुआ।
आंधियों में मेरा ठिकाना हुआ।
जिसको देखे बिना
करार न था,
उसको देखे हुए जमाना हुआ।
उसको देखे हुए जमाना हुआ।
मरना जीना तो इस जमाने मेंं,
मिलने-जुलने का इक बहाना हुआ।
मिलने-जुलने का इक बहाना हुआ।
हर कदम मुश्किलों भरा यारब
किस मुहूरत में मैं रवाना हुआ।
और दुश्वारियां न कर पैदा,
बस बहुत सब्र आजमाना हुआ।
बस बहुत सब्र आजमाना हुआ।
भूल जाएंगे सब मेरा किस्सा,
मैं गए वक़्त का फसाना हुआ।
मैं गए वक़्त का फसाना हुआ।
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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब
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