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सोमवार, 11 जून 2018

चार तिनकों का आशियाना हुआ

चार तिनकों का आशियाना हुआ,
आंधियों में मेरा ठिकाना हुआ।

जिसको देखे बिना करार न था,
उसको देखे हुए जमाना हुआ।

मरना जीना तो इस जमाने मेंं,
मिलने-जुलने का इक बहाना हुआ।

हर कदम मुश्किलों भरा यारब
किस मुहूरत में मैं रवाना हुआ।

और दुश्वारियां न कर पैदा,
बस बहुत सब्र आजमाना हुआ।

भूल जाएंगे सब मेरा किस्सा,
मैं गए वक़्त का फसाना हुआ।

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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