गूंगी नगरी, बहरा
राजा, झूठी ठाट और बाट.
समय चटाई पर लेटा
है, खड़ी है सबकी खाट.
सूखी धरती पानी
मांगे, दलदल मांगे धूप.
दाता कहता बस रहने
दो, जिसका जैसा रूप.
धनवानों पर धन बरसाए,
निर्धन पऱ प्रहार.
यारब! तेरी दुनिया न्यारी, लीला अपरंपार.
हर याचक को पता है अपने दाता की औकात.
अधजल गगरी जब छलकेगी, बांटेगा खैरात.
-देवेंद्र गौतम