समर्थक

रविवार, 18 अगस्त 2019

घर के अंदर घर जला देने की साज़िश हो रही है


मौसमों की किस कदर हमपर नवाज़िश हो रही है.
रोज आंधी आ रही है, रोज बारिश हो रही है.

रात-दिन सपने दिखाए जा रहे हैं हम सभी को
बैठे-बैठे आस्मां छूने की कोशिश हो रही है.

शक के घेरे में पड़ोसी भी है लेकिन दरहक़ीकत
घर के अंदर घर जला देने की साज़िश हो रही है.

जंगलों में आजकल इनसान देखे जा रहे हैं
और शहरों में दरिंदों की रहाइश हो रही है.

अब यहां कुदरत की खुश्बू की कोई कीमत नहीं है
हर तरफ कागज के फूलो की नुमाइश हो रही है.

1 टिप्पणी:

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

अच्छी-बुरी जो भी हो...प्रतिक्रिया अवश्य दें