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शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

सारा मंज़र धुआं-धुआं है अब


हर तरफ वहम है गुमां है अब
सारा मंजर धुआं- धुआं है अब.

खत्म होने को दास्तां है अब.
उनकी बातों में दम कहां है अब.

कुछ बचा ही नहीं छुपाने को
राज़ जितना भी था अयां है अब

मखमली सेज़ हो गई रुखसत
खुश्क पत्तों का आशियां है अब.

अपने सर का ख़याल रखिएगा
टूटने वाला आस्मां है अब.

वक़्त ने इस कदर लिया करवट
कल जो बच्चा था नौजवां है अब.

रक्स लफ़्जों का था जहां गौतम
एक ठहरा हुआ बयां है अब.

--देवेंद्र गौतम

2 टिप्‍पणियां:

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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