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शनिवार, 7 सितंबर 2019

माल मिर्जा का है, उड़ाओ जी

सच जहां तक छुपे, छुपाओ जी.
झूठ का सिलसिला बढ़ाओ जी.

भूत दिखने लगे हरेक चेहरा
हमको इतना तो मत डराओ जी.

कौन तुमसे हिसाब मांगेगा
माल मिर्जा का है उड़ाओ जी.

अब समंदर की क्या जरूरत है
एक चुल्लू में डूब जाओ जी

सब दुकानों का हाल खस्ता है
अपना सिक्का अभी चलाओ जी.

मेज़बानों का तकाजा समझो
खुद न खाओ हमें खिलाओ जी.

सब खरीदार हो गए रुखसत
अब तो अपनी दुकां उठाओ जी.

इस अंधेरे में कुछ नज़र आए
इक दिया तो कहीं जलाओ जी.

हाथ पर हाथ धर के मत बैठो
अपनी ताकत भी आजमाओ जी.

-देवेंद्र गौतम

1 टिप्पणी:

  1. वह देवेंद्र जी क्या कमाल लिखा है आपने | आनंद आ गया शैली और प्रभाव तो आपके क्या कहने | बहुत बहुत शुक्रिया साझा करने के लिए

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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