हर बंदी
के नाम रिहाई होती है.
साहब
की हर बात हवाई होती है.
पहले चोंच लड़ाते हैं इक दूजे से
फिर
आपस में हाथापाई होती है.
कौन
गरीबों की फरियाद सुने आखिर
दौलतवालों
की सुनवाई होती है.
एक-एक
कर सब बाराती लौट चुके
देखें
कब दुल्हन की विदाई होती है.
ऐसे
लम्हे भी आते हैं जीवन में
ऊपर
पर्वत नीचे खाई होती है.
बाहर-बाहर
ईमां की बातें करते
अंदर-अंदर
खूब कमाई होती है.
-देवेंद्र
गौतम
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