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रविवार, 14 अप्रैल 2024

किस तरह काटे गए सहपर कहो

 

सामने जो कुछ भी है मंजर कहो.

अब जो कहना है उसे खुलकर कहो.

 

फूल बतलाओगे तो मानेगा कौन

हाथ में पत्थर है तो पत्थर कहो.

 

फिर दिखा देंगे सुहाने ख्वाब कुछ

लाख तुम हालात को बदतर कहो.

 

मिल गई ऊंची उड़ानों की सज़ा

किस तरह काटे गए सहपर कहो.

 

खाद-पानी तो मुकम्मल थी मगर

खेत फिर कैसे हुए बंजर कहो.

 

वक्त का क्यों रख नहीं पाते खयाल

घर से कितना दूर है दफ्तर कहो.

-देवेंद्र गौतम

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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