डूबने वाले को तिनके के सहारे थे बहुत.
एक दरिया था यहां जिसके किनारे थे बहुत.
एक तारा मैं भी रख लेता तो क्या जाता तेरा
आस्मां वाले तेरे दामन में तारे थे बहुत.
वक़्त की दीवार से इक रोज रुखसत हो गयी
हमने जिस तसवीर के सदके उतारे थे बहुत.
हमने अपनी जिंदगी में तीर मारे थे बहुत.
वक़्त की आंधी उसे इक दिन उड़ाकर ले गयी
हमने जिस बरगद के नीचे दिन गुज़ारे थे बहुत.
उनकी नज़रें हमपे पड़ने की कोई सूरत न थी
वो घिरे थे भीड़ में और हम किनारे थे बहुत.
लाल, पीले और हरे रंगों में गुम थी जिंदगी
शह्र में चारो तरफ दिलकश नज़ारे थे बहुत.
----देवेंद्र गौतम
वक़्त की आंधी उसे इक दिन उड़ाकर ले गयी
जवाब देंहटाएंहमने जिस बरगद के नीचे दिन गुज़ारे थे बहुत.
jane kitna kuch yun hi chala jata hai
बढ़िया , बहुत शुक्रिया ..
जवाब देंहटाएंवक़्त की आंधी उसे इक दिन उड़ाकर ले गयी
जवाब देंहटाएंहमने जिस बरगद के नीचे दिन गुज़ारे थे बहुत.
लाजावाब शेर...
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने.
वक़्त की आंधी उसे इक दिन उड़ाकर ले गयी
जवाब देंहटाएंहमने जिस बरगद के नीचे दिन गुज़ारे थे बहुत.
उनकी नज़रें हमपे पड़ने की कोई सूरत न थी
वो घिरे थे भीड़ में और हम किनारे थे बहुत.
बहुत खूबसूरत गज़ल
लाल, पीले और हरे रंगों में गुम थी जिंदगी शह्र में चारो तरफ दिलकश नज़ारे थे बहुत.
जवाब देंहटाएंलाजावाब शेर...
बहुत खूबसूरत गज़ल...
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब ग़ज़ल लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंआसान बातें आसान शब्दों में गंभीर मंतव्यों के साथ| बधाई इस ग़ज़ल के लिए मान्यवर|
जवाब देंहटाएंवक़्त की आंधी उसे इक दिन उड़ाकर ले गयी
जवाब देंहटाएंहमने जिस बरगद के नीचे दिन गुज़ारे थे बहुत.
वाह .. बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ।
बहुत बढ़िया... बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है... हर एक शेअर लाजवाब है!!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,देवेन्द्र भाई.
जवाब देंहटाएंपूरी ग़ज़ल लाजवाब है.
हर शेर अपनी कहानी खुद बयां कर रहा है.
ਜੀਵਨ ਦੀ ਬਾਜੀ ਜੇ ਹਾਰੇ ਨਾ ਹੁੰਦੇ,
ਦੁਨੀਆ'ਚ ਲਭਦੇ ਸਹਾਰੇ ਨਾ ਹੁੰਦੇ.
शुभ कामनाएं.
bahut bahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर,शानदार और उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंवक़्त की आंधी उसे इक दिन उड़ाकर ले गयी
जवाब देंहटाएंहमने जिस बरगद के नीचे दिन गुज़ारे थे बहुत.
-वाह!!! कितना गहरा अर्थ लिए शेर कहा है...बहुत उम्दा!!
बहुत खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
एक तारा मैं भी रख लेता तो क्या जाता तेरा
जवाब देंहटाएंआस्मां वाले तेरे दामन में तारे थे बहुत...
वह देवेन्द्र जी .... बहुत खूब ... लाजवाब ग़ज़ल है ... हर शेर पर वाह वाह निकलती है ... सुभान अल्ला ... कुर्बान हूँ इस शेर पर ...
प्यारी ग़ज़ल. हर शेर क़ाबिले-दाद.बरगद वाला शेर ग़ज़ब का है.
जवाब देंहटाएंएक तारा मैं भी रख लेता तो क्या जाता तेरा
जवाब देंहटाएंआस्मां वाले तेरे दामन में तारे थे बहुत
बिलकुल सही शिकवा है
ग़ज़ल ही का शेर,,, अच्छा बन पडा है...
वक़्त की दीवार से इक रोज रुखसत हो गयी
हमने जिस तसवीर के सदके उतारे थे बहुत
ये शेर तो ग़ज़ल की जान है... बहुत खूब .. !!
और.... हम किनारे थे बहुत....
वाह,,, आपका अपना मुनफ़रिद अंदाज़ ,, वाह !!!
बहुत ख़ूबसूरत देवेन्द्र जी, बहुत ही ख़ूबसूरत....
जवाब देंहटाएंलाजावाब शेर...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल..
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंवक़्त की आंधी उसे इक दिन उड़ाकर ले गयी
जवाब देंहटाएंहमने जिस बरगद के नीचे दिन गुज़ारे थे बहुत
बहुत ख़ूबसूरत ,बामक़सद शेर जो अपने अंदर बड़ी गहराइयां समेटे हुए है
एक तारा मैं भी रख लेता तो क्या जाता तेरा
आस्मां वाले तेरे दामन में तारे थे बहुत.
ख़ुदा से शिकायत का बेहद मासूम अंदाज़
अच्छी ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं
वक़्त की आंधी उसे इक दिन उड़ाकर ले गयी
जवाब देंहटाएंहमने जिस बरगद के नीचे दिन गुज़ारे थे बहुत
BOhot khoobsoorat!! Badhai...
इक परिंदा भी मुक़द्दर में न था अफ़सोस है
जवाब देंहटाएंहमने अपनी जिंदगी में तीर मारे थे बहुत.
बेहतरीन ग़ज़ल ... हरेक शेर मुकम्मल और लाजवाब है ...
ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या ?
बेहतरीन ग़ज़ल ...........
जवाब देंहटाएंउनकी नज़रें हमपे पड़ने की कोई सूरत न थी
जवाब देंहटाएंवो घिरे थे भीड़ में और हम किनारे थे बहुत.
ek-ek shabd lazabab.
वक़्त की दीवार से इक रोज रुखसत हो गयी
जवाब देंहटाएंहमने जिस तसवीर के सदके उतारे थे बहुत.
खूबसूरत गज़ल
एक और लाजवाब गज़ल.."एक तारा मैं भी रख लेता तो क्या जाता तेरा...", "वक़्त की आंधी उसे इक दिन उड़ाकर ले गयी..", "उनकी नज़रें हमपे पड़ने की कोई सूरत न थी.." बहुत ही उम्दा.. बधाई.
जवाब देंहटाएं