ज़मीं की खाक में देखा गया है.
परिंदा जो बहुत ऊंचा उड़ा है.
हवा का काफिला ठहरा हुआ है.
फ़ज़ा के सर पे सन्नाटा जड़ा है.
मरासिम टूटने के बाद अक्सर
तआल्लुक और भी गहरा हुआ है.
मेरे सीने में कुछ ठहरा हुआ है.
नदी की बांध अब टूटी ही समझो
कि पानी सर के ऊपर जा रहा है.
कभी अहसास की कीमत लगी है
कभी जज़्बात का सौदा हुआ है.
तुम्हारे नाम सबकुछ कर चुके हैं
हमारे पास अब रखा ही क्या है.
कोई हलचल नहीं है ज़ेहनो-दिल में
तमन्नाओं का सूरज ढल चुका है.
संभलने के लिए बदलीं थीं राहें
वही आवारगी का सिलसिला है.
जिए या मर चुके अपनी बला से
मेरा गौतम से कोई वास्ता है?
-------देवेंद्र गौतम
-------देवेंद्र गौतम
ज़मीं की खाक में देखा गया है.
जवाब देंहटाएंपरिंदा जो बहुत ऊँचा उड़ा है.
मरासिम टूटने के बाद अक्सर
तआल्लुक और भी गहरा हुआ है
बहुत ख़ूब!
ज़बर्दस्त मुतालेआ है इंसानी फ़ितरत का !
कोई हलचल नहीं है ज़हनो-दिल में
जवाब देंहटाएंतमन्नाओं का सूरज ढल चुका है.
कभी अहसास की कीमत लगी है
कभी जज़्बात का सौदा हुआ है.
संभलने के लिए बदलीं थीं राहें
वही आवारगी का सिलसिला है.
इन अश`आर ने
बहुत मुतआसिर किया है ..... !